Sunday, October 4, 2009

विंग्स आफ फायर: एन आटोबायोग्राफी आफ एपीजे अब्दुल कलाम


विंग्स आफ फायर: एन आटोबायोग्राफी आफ एपीजे अब्दुल कलाम (१९९९), भारत के पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम की आत्मकथा है। इसके सह-लेखक अरुण तिवारी हैं। इसमे अब्दुल कलाम के बचपन से लेकर लगभग १९९९ तक के जीवन सफर के बारे मे बताया गया है। मूल रुप मे अंग्रेजी मे प्रकाशित यह किताब, विश्व की १३ भाषाओ मे अनूदित हो चुकी है। जिसमे भारत की प्रमुख भाषाए हिंदी, गुजराती, तेलगु, तमिल, मराठी, मलयालम के साथ-साथ कोरियन, चीनी और ब्रेल लिपि भी शामिल है।

स्वरूप
आत्मकथा ४ भागों में विभाजित है।

अनुस्थापन
अनुस्थापन(Orientation)शीर्षक से लिखा गया पहला भाग, तीन अध्यायों मे विभाजित है। इसमे डॉ. अब्दुल कलाम के बचपन से ले के पहले ३२ वर्षो के संस्मर्णो का वर्णन है। इन वर्षों मे डा. कलाम के बचपन, शिक्षा और शुरूआती कार्यजीवन के बारे मे बताया गया है। डा. कलाम का जन्म तमिलनाडु मे रामेश्वरम मे मध्यम वर्गीय तमिल मुस्लिम परिवार में हुआ था। उनके परिवार, चचरे भाईयों, शिक्षकों और अन्य लोगों से पडे प्रभावों के बारे में वर्णन किया गया है। रामेश्वरम में प्राइमरी स्कूल में पढ़ने के बाद, डॉ. कलाम शवार्टज़ हाई स्कूल, रामनाथपुरम गए और वहाँ से उच्च शिक्षा के लिए सेंट जोज़िफ़ कालेज, तीरुच्छीरापल्ली (त्रिची) गए। उनके शिक्षा के बारे मे किए गए वर्णन मे वे अपने शिक्षकों और उनके साथ हुए अनुभवों के बारे में बताते हैं। सेंट जोज़िफ़ कालेज से बीएससी पास करने के बाद विमान-विज्ञान की पढ़ाई करने के लिए उन्होंने मद्रास इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नालोजी (MIT) में दाखिला लिया। १९५८ में मद्रास इंस्टीट्यूट आफ टेकनालजी से अंतरिक्ष विज्ञान में स्नातक की उपाधि प्राप्त की है। एम आई टी से एक प्रशिक्षार्थी के रूप में वह एच ए एल बैंगलोर गए। इसके बाद डॉ. कलाम ने डी टी डी एंड पी (वायु) के तकनीकी केन्द्र (सिविल विमानन) में वरिष्ठ वैज्ञानिक सहायक के रूप में २५० मासिक मूल वेतन पर नौकरी आरंभ की। इस भाग के अंत मे वे ६ महीने के प्रशिक्षण के लिए नासा, अमेरिका जाते है।

सृजन
सृजन(Creation) भाग, ७ अध्यायो मे है, अध्याय ४ से अध्याय १० तक। इसमे डा. कलाम के जीवन के १७ सालों (१९६३-१९८०) का वर्णन है। इस भाग में, इन वर्षो मे हुए उनके काम और भारत के तकनीकी विकास की कहानी मिलती है। डा. कलाम इसरो मे काम करने वाले एक इंजीनीयर से देश की बहुचर्चित तकनीकी परियोजना, एसएलवी के प्रमुख बनते है। इस दौरान उनको अन्य छोटी बड़ी सफलता और असफलाताओं से सामना करना पडता है। वे न केवल उच्च अधिकारियों का वर्णन करते है वरन कई उभरते हुए वैज्ञानिकों के साथ हुए अनुभवों के बारे में भी लिखते हैं। १९७६ मे उनके पिता का देहांत होता है। १९८१ मे उन्हें पद्मभूषण मिलता है। इस भाग के अंत मे वे डीआरडीएल के निर्देशक के रूप मे चुने जाते हैं|

प्रसादन
प्रसादन(Propitiation) इस भाग मे डा. कलाम के जीवन के अगले १० सालों के बारे मे लिखा गया है। यह भाग ५ अध्यायो में है, अध्याय ११ से अध्याय १४ तक। इस भाग में उनके द्वारा डीआरडीएल में किए उनके प्रबंधन संबंधित कार्यो का ज्यादा वर्णन है। डीआरडीएल प्रयोगशाला डा. कलाम के प्रबंधन के अंतर्गत आत्मविश्वास के साथ भारत के मिसाइल परियोजना का निर्माण करती है। इस भाग में वे वर्णन करते हैं कि कैसे वे इस काम को अंजाम देने के लिए व्यक्तियों का चुनाव करते है। उनके रास्ते मे आई मुश्किलों को हल करने के लिए वे पारंपरिक शैली से हटकर नए निर्णय लेते हैं। वे शिक्षण संस्थाओं के साथ भी भागीदारी करते हैं।

अवलोकन
अवलोकन(Contemplation) नामक अंतिम भाग २ अध्यायो में है, अध्याय १५ और अध्याय १६। इसमें डा. कलाम के जीवन के अगले ९ सालों (१९९१-१९९९) तक का वर्णन है। इस भाग में डा. कलाम अपने जीवन के अनुभवों, ज्ञान और विचार को संकलित करते है। वर्ष १९९७ में भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित होते हैं और देश की आने वाली पीढ़ी को संदेश देते हैं।

स्रोत : विकिपीडिया

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